तिलकधारी महाविद्यालय के शिक्षक शिक्षा विभाग द्वारा "भारतीय ज्ञान परंपरा और विकसित भारत: 2047" विषय पर आयोजित एक दिवसीय शैक्षिक संगोष्ठी में मुख्य वक्ता प्रो. आर. पी. पाठक, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के शिक्षा संकाय डीन थे। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा की व्यापकता और आज की प्रासंगिकता पर अपने विचार रखे।
संगोष्ठी में प्रो. अजय कुमार दुबे, डीन (शिक्षा संकाय), वी.बी.एस. पूर्वांचल विश्वविद्यालय ने बताया कि प्रो. पाठक एक उच्च चिंतक और लेखक हैं। उनके द्वारा लगभग 120 राष्ट्रीय पुस्तकों का लेखन और संपादन किया गया है। प्रो. पाठक ने अपने व्याख्यान में भारतीय वांग्मय की सशक्त ज्ञान परंपरा को रेखांकित करते हुए बताया कि कैसे वैदिक शिक्षा प्रणाली में श्रवण, मनन और निर्देशन से ज्ञान का जीवंत प्रवाह होता रहा।
प्राचार्य प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा आज भी वैश्विक स्तर पर प्रासंगिक है। प्रो. समर बहादुर सिंह ने अध्यक्षीय उद्बोधन में भारतीय चिंतन और दर्शन की प्रासंगिकता पर जोर दिया। अन्य वक्ताओं में प्रो. सुधान्शु सिन्हा, प्रो. रीता सिंह, डॉ. अरविंद कुमार सिंह और डॉ. प्रशांत कुमार सिंह शामिल थे।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. वैभव सिंह ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सीमांत कुमार राय ने किया।